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Tuesday, August 28, 2018

गणपति बापा के आठ स्वयभू अवतार कोन कोनसे है ???

गणपति बापा के आठ स्वयभू प्रतिमाएँ जिनको अष्टविनायक भी कहा जाता है और अष्टविनायक का मतलब है  "आठ गणपति "| ये आठ स्वयभू पवित्र मंदिर महाराष्ट्र में पुणे के समीप १०० किलोमीटर के अन्दर है , इन मंदिरो में विराजित गणेश की प्रतिमाएँ स्वयंभू मानी जाती हैं , इसका  उल्लेख पुराणों में किया गया है | ये  मंदिरो की यात्रा अष्टविनायक तीर्थ यात्रा के बारे में जानी जाती है।

 इन स्वयंभू मंदिरो के नाम इस प्रकार है

                                          पहला =मयूरेश्वर या मोरेश्वरमोरगाँव, पुणे


                                       दूसरा =सिद्धिविनायककरजत तहसील, अहमदनगर



                                         तीसरा  =बल्लालेश्वरपाली गाँव, रायगढ़


                                           चौथा  =वरदविनायककोल्हापुर, रायगढ़



                                           पाँचवा  =चिंतामणीथेऊर गाँव, पुणे


                                              छठा   =गिरिजात्मज अष्टविनायकलेण्याद्री गाँव, पुणे

 
                                            सातवा    =विघ्नेश्वर अष्टविनायकओझर,पुणे


                                               आठवा    =महागणपतिराजणगाँव,पुणे

Saturday, August 25, 2018

दोस्तों जो हम गले में माला पहनते है उसका उद्भव कैसे हुवा ???

दोस्तों लोग गले में अलग अलग प्रकार की माला पहनते है और उन माला का उद्भव कैसे हुवा .आवो आज हम जानते  है 



जब रावण माता सीता को ले जाते है तब भगवान राम माता सीता को वन में ढूंढते है तब उनकी मुलाकात श्री हनुमान जी से होती है और हनुमान जी श्री राम की मुलाकात सुग्रीव से करवाते है | और कहते है किष्किंधा बाली सुग्रीव की हत्या करना चाहते है अगर हम उनके प्राणो की रक्षा करे तो माता सीता को ढूंढने में सुग्रीव हमारी मदद करेंगे |

भगवान राम उनकी बात मान लेते है  और सुग्रीव को बाली  से युद्ध करने  के लिए चुनौती देने को कहते है  , सुग्रीव  किष्किंधा जाकर राजा बाली युद्ध के लिए ललकारते है, बाली और सुग्रीव दोनों युद्ध करते है और श्री राम अपने भाई लक्ष्मण और हनुमान जी के साथ छिपकर बाली को मारने  की योजना  बनाते है , किन्तु बाली और सुग्रीव एक जैसे दिखने  के कारण श्री राम बाली को पहचान नहीं पाते और बाण नहीं चलाते  है  जिससे युद्ध में सुग्रीव को काफी चोट  लगती  है। फिर सुग्रीव श्री राम से कहते  है कि "आपने ऐसा क्यों किया बाली को मारा क्यों नहीं ?" तब श्री राम कहते है -"आप दोनों भाई एक जैसे दिखते है , मै युद्ध में बाली  को पहचान नहीं सका , इस कारण उस पैर बाण नहीं चलाया " तब श्री राम ने एक युक्ति सोची और सुग्रीव को एक फूलो की एक माली पहनाई और फिर से  बाली को युद्ध के लिए ललकारने को कहा।  सुग्रीव फिर से बाली को युद्ध के लिए ललकारने लगा तब बाली ने कहा "तुम कायर हो आज मै  तुम्हारा वध करके रहुगा ". ऐसा कहकर दोनों के बीच युद्ध शुरू हो जाता है , श्री राम भी बाली को अच्छी तरह पहचान सकते थे तब छिपकर बाली के ऊपर  बाण चला दिया और बाली जमींन  पैर गिर गया  .

इस तरह दोस्तों हम जो गले में माला पहनते  है उसका उद्धभव हुवा ,  अगर हम माला पहनते है  तो भगवान  अपने भगत को जल्दी पहचान लेते है .भगवान शिव के भगत रुद्राक्ष की माला  पहनते है और भगवान विष्णु के भगत तुलसी की माला पहनते है , जिससे  पता चल जाता है कोण किसका भगत है | 

Saturday, August 11, 2018

भगवान दत्त के गुरु कितने है और कोन है



दोस्तों , जीवन में गुरु की अपनी एक जगह होती है कहते है बिना गुरु के बिना ज्ञान प्रात नहीं कर सकते।  भगवान दत्त स्वय भगवान विष्णु के अवतार है वो गुरुओ के गुरु है फिर भी उन्होंने अपने जीवन में २४ गुरु बनाइये है।  वो कहते है जिससे जितना जितना ज्ञान मिलता है हमको उन गुणों को प्रदाता मानकर उन्हें अपना गुरु मानना  चाहिए.




इस तरह उन्होंने अपने २४गुरु बनाये है 
1 )पृथ्वी 
2 )जल 
3 )वायु 
4 )आकाश 
5 )चन्द्रमा 
6 )सूर्य 
7 )समुंद्र 
8 )अजगर 
9 )पतंगा 
10 )भोरा 
11 )मधुमखी 
12 )हाथी 
13 )मछ्ली 
14 )हिरण 
15)पिग्ला वेश्या 
16 )कबूतर 
17 )कुकरपक्षी 
18 )बालक 
19 )कुमारीकन्या 
20 )सर्फ 
21 )सरकृत या तीर बनाने वाला 
22 )मकड़ी 
23 )भृंगी कीड़ा 
24 ) अग्नि 





Sunday, July 15, 2018

दत्त भगवान् के अवतार और उनका कार्यकल

                                                        दत्त भगवान् 
 
    
  दत्त भगवान् के अवतार और उनका कार्यकल

                                
                                         पहला अवतार=श्री पादवल्लभा स्वामी महाराज (1320A.D-1350A.D)



                               दूसरा अवतार= श्री नरसिम्हा सरस्वती स्वामी महाराज(1378A.D-1458A.D)

 

                               तीसरा अवतार=श्री स्वामी समर्थ महाराज(1838A.D-1878A.D)

 

                                     चोथा अवतार= श्री साईं बाबा शिर्डी (1838A.D-1918A.D)

 
   
                            पाचवा अवतार = श्री गजानन महाराज (1878A.D-1910A.D)

 

                                छठा अवतार= श्री वसुदेवानान्द सरस्वती महाराज (1854A.D-1914A.D)

 

                           सातवा अवतार= श्री योगानन्द सरस्वती महाराज (1869A.D-1938A.D)

 

 
                       आठवा अवतार= श्री रंग अवधूत महाराज (1898A.D-1968A.D)

 











 

Monday, June 18, 2018

बिल्वपत्र का अर्थ और उसकी विशेषता

_*शिव पुराण के अनुसार शिवलिंग पर कई प्रकार की सामग्री फूल-पत्तियां चढ़ाई जाती हैं, इन्हीं में से सबसे महत्वपूर्ण है बिल्वपत्र! बिल्वपत्र से जुड़ी खास बातें जानने के बाद आप भी मानेंगे कि बिल्व का पेड़ बहुत ही चमत्कारी है।*_

_पुराणों के अनुसार रविवार के दिन और द्वादशी तिथि पर बिल्ववृक्ष का विशेष पूजन करना चाहिए, इस पूजन से व्यक्ति ब्रह्महत्या जैसे महापाप से भी मुक्त हो जाता है।_

_क्या आप जानते हैं कि बिल्वपत्र छ: मास तक बासी नहीं माना जाता, इसका मतलब यह है कि लंबे समय तक शिवलिंग पर एक बिल्वपत्र धोकर पुन: चढ़ाया जा सकता है या बर्फीले स्थानों के शिवालयों में अनुपलब्धता की स्थिति में बिल्वपत्र चूर्ण भी चढाने का विधान मिलता है।_

_आयुर्वेद के अनुसार बिल्ववृक्ष के सात पत्ते प्रतिदिन खाकर थोड़ा पानी पीने से स्वप्न दोष की बीमारी से छुटकारा मिलता है, इसी प्रकार यह एक औषधि के रूप में काम आता है।_

_शिवलिंग पर प्रतिदिन बिल्वपत्र चढ़ाने से सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं, भक्त को जीवन में कभी भी पैसों की कोई समस्या नहीं रहती है, शास्त्रों में बताया गया है जिन स्थानों पर बिल्ववृक्ष हैं वह स्थान काशी तीर्थ के समान पूजनीय और पवित्र है, ऐसी जगह जाने पर अक्षय्य पुण्य की प्राप्ति होती है।_

_बिल्वपत्र उत्तम वायुनाशक, कफ-निस्सारक व जठराग्निवर्धक है, ये कृमि व दुर्गन्ध का नाश करते हैं, इनमें निहित उड़नशील तैल व इगेलिन, इगेलेनिन नामक क्षार-तत्त्व आदि औषधीय गुणों से भरपूर हैं, चतुर्मास में उत्पन्न होने वाले रोगों का प्रतिकार करने की क्षमता बिल्वपत्र में है।_
 
_*ध्यान रखें इन कुछ तिथियों पर बिल्वपत्र नहीं तोड़ना चाहिए:-*_
_ये तिथियां हैं चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, द्वादशी, चतुर्दशी, अमावस्या, पूर्णिमा, संक्रान्ति और सोमवार तथा प्रतिदिन दोपहर के बाद बिल्वपत्र नहीं तोड़ना चाहिए, ऐसा करने पर पत्तियां तोड़ने वाला व्यक्ति पाप का भागी बनता है।_

_शास्त्रों के अनुसार बिल्व का वृक्ष उत्तर-पश्चिम में हो तो यश बढ़ता है, उत्तर दक्षिण में हो तो सुख शांति बढ़ती है और मध्य में हो तो मधुर जीवन बनता है। घर में बिल्ववृक्ष लगाने से परिवार के सभी सदस्य कई प्रकार के पापों के प्रभाव से मुक्त हो जाते हैं, इस वृक्ष के प्रभाव से सभी सदस्य यशस्वी होते हैं, समाज में मान-सम्मान मिलता है, ऐसा शास्त्रों में वर्णित है।_

_बिल्ववृक्ष के नीचे शिवलिंग पूजा से सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं, बिल्व की जड़ का जल सिर पर लगाने से सभी तीर्थों की यात्रा का पुण्य मिल जाता है, गंध, फूल, धतूरे से जो बिल्ववृक्ष के जड़ की पूजा करता है, उसे संतान और सभी सुख मिल जाते हैं।_

_बिल्ववृक्ष की बिल्वपत्रों से पूजा करने पर सभी पापों से मुक्ति मिल जाती हैं, जो बिल्व की जड़ के पास किसी शिव भक्त को घी सहित अन्न या खीर दान देता है, वह कभी भी धनहीन या दरिद्र नहीं होता। क्योंकि यह श्रीवृक्ष भी पुकारा जाता है, यानी इसमें देवी लक्ष्मी का भी वास होता है।_
_

*बिल्वपत्र की महत्ता प्रतिपादित करता हुआ बिल्वाष्टक स्तोत्रम्:-*_
_त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रयायुधम्।_
_त्रिजन्मपापसंहार बिल्वपत्रं शिवार्पणम्।।_
_त्रिशाखैर्बिल्वपत्रैश्च ह्यच्छिद्रै: कोमलै: शुभै:।_
_शिवपूजां करिष्यामि बिल्वपत्रं शिवार्पणम्।।_
_अखण्डबिल्वपत्रेण पूजिते नन्दिकेश्वरे।_
_शुद्ध्यन्ति सर्वपापेभ्यो बिल्वपत्रं शिवार्पणम्।।_
_शालग्रामशिलामेकां विप्राणां जातु अर्पयेत्।_
_सोमयज्ञ महापुण्यं बिल्वपत्रं शिवार्पणम्।।_
_दन्तिकोटिसहस्राणि वाजपेयशतानि च।_
_कोटिकन्यामहादानं बिल्वपत्रं शिवार्पणम्।।_
_लक्ष्म्या: स्तनत उत्पन्नं महादेवस्य च प्रियम्।_
_बिल्ववृक्षं प्रयच्छामि बिल्वपत्रं शिवार्पणम्।।_
_दर्शनं बिल्ववृक्षस्य स्पर्शनं पापनाशनम्।_
_अघोरपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम्।।_
_मूलतो ब्रह्मरूपाय मध्यतो विष्णुरूपिणे।_
_अग्रत: शिवरूपाय बिल्वपत्रं शिवार्पणम्।।_
_*बिल्वाष्टकमिदं पुण्यं य: पठेच्छिवसन्निधौ।*_
_*सर्वपापविनिर्मुक्त: शिवलोकमवाप्नुयात्।।*_
_*जय महादेव!नमःशिवाय*_.    

Thursday, June 14, 2018

क्यों नहीं करना चाहिए भगवान श्री कृष्ण के पीठ के दर्शन"*



आमतौर पर आप मंदिर जाते हो तो भगवान् के दर्शन जरूर करते हो लेकिन शायद आपको यह नहीं पता की मंदिर में भगवान् की पीठ के दर्शन नहीं करने चाहिए।
 
 अब आप सोच रहे होंगे की भगवान् की पीठ के दर्शन क्यों नहीं करने चाहिए इसके पीछे भी एक कथा है।

 कथा के अनुसार जब श्रीकृष्ण जरासंध से युद्ध कर रहे थे तब जरासंध का एक साथी असूर कालयवन भी भगवान से युद्ध करने आ पहुंचा। कालयवन श्रीकृष्ण के सामने पहुंचकर ललकारने लगा। तब श्रीकृष्ण भाग रहे थे तब कालयवन भी उनके पीछे-पीछे भागने लगा। इस तरह भगवान रणभूमि से भागे क्योंकि कालयवन के पिछले जन्मों के पुण्य बहुत अधिक थे और कृष्ण किसी को भी तब तक सजा नहीं देते जब कि पुण्य का बल शेष रहता है। कालयवन कृष्णा की पीठ देखते हुए भागने लगा और इसी तरह उसका अधर्म बढऩे लगा क्योंकि भगवान की पीठ पर अधर्म का वास होता है और उसके दर्शन करने से अधर्म बढ़ता है।
अत: भगवान श्री हरि की पीठ के दर्शन नहीं करने चाहिए क्योंकि इससे हमारे पुण्य कर्म का प्रभाव कम होता है और अधर्म बढ़ता है। कृष्णजी के हमेशा ही मुख की ओर से ही दर्शन करें।

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श्रीकृष्ण भगवान का रणछोड़ नाम कसे पड़ा


 दोस्तों , पिछले ब्लॉग में आपने पढ़ा कि क्यों पड़ते है श्री जगन्नाथ भगवान प्रत्येक वर्ष बीमार पढ़ते है और चलो दोस्तों आज एक और नयी कहानी पड़ेगे श्रीकृष्ण भगवान का रणछोड़ नाम कसे पड़ा
 

कथा के अनुसार जब श्रीकृष्ण जरासंध से युद्ध कर रहे थे तब जरासंध का एक साथी असूर कालयवन भी भगवान से युद्ध करने आ पहुंचा।

कालयवन श्रीकृष्ण के सामने पहुंचकर ललकारने लगा।

तब श्रीकृष्ण वहां से भाग निकले। इस तरह रणभूमि से भागने के कारण ही उनका नाम रणछोड़ पड़ा।


क्योंकि कालयवन के पिछले जन्मों के पुण्य बहुत अधिक थे और कृष्ण किसी को भी तब तक सजा नहीं देते जब कि पुण्य का बल शेष रहता है।



Monday, June 11, 2018

हनुमान चालिशा का अर्थ विस्तार से

दोस्तों,हम सब हनुमान चालीसा पढते हैं, सब रटा रटाया।
क्या हमे चालीसा पढते समय पता भी होता है कि हम हनुमानजी से क्या कह रहे हैं या क्या मांग रहे हैं?
बस रटा रटाया बोलते जाते हैं। आनंद और फल शायद तभी मिलेगा जब हमें इसका मतलब भी पता हो।
तो लीजिए पेश है श्री हनुमान चालीसा अर्थ सहित!!
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुरु सुधारि।
बरनऊँ रघुवर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।
《अर्थ》→ गुरु महाराज के चरण.कमलों की धूलि से अपने मन रुपी दर्पण को पवित्र करके श्री रघुवीर के निर्मल यश का वर्णन करता हूँ, जो चारों फल धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को देने वाला हे।★
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बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरो पवन कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार।★
《अर्थ》→ हे पवन कुमार! मैं आपको सुमिरन.करता हूँ। आप तो जानते ही हैं, कि मेरा शरीर और बुद्धि निर्बल है। मुझे शारीरिक बल, सदबुद्धि एवं ज्ञान दीजिए और मेरे दुःखों व दोषों का नाश कर दीजिए।★
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जय हनुमान ज्ञान गुण सागर, जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥1॥★
《अर्थ 》→ श्री हनुमान जी! आपकी जय हो। आपका ज्ञान और गुण अथाह है। हे कपीश्वर! आपकी जय हो! तीनों लोकों,स्वर्ग लोक, भूलोक और पाताल लोक में आपकी कीर्ति है।★
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राम दूत अतुलित बलधामा, अंजनी पुत्र पवन सुत नामा॥2॥★
《अर्थ》→ हे पवनसुत अंजनी नंदन! आपके समान दूसरा बलवान नही है।★
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महावीर विक्रम बजरंगी, कुमति निवार सुमति के संगी॥3॥★
《अर्थ》→ हे महावीर बजरंग बली! आप विशेष पराक्रम वाले है। आप खराब बुद्धि को दूर करते है, और अच्छी बुद्धि वालो के साथी, सहायक है।★
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कंचन बरन बिराज सुबेसा, कानन कुण्डल कुंचित केसा॥4॥★
《अर्थ》→ आप सुनहले रंग, सुन्दर वस्त्रों, कानों में कुण्डल और घुंघराले बालों से सुशोभित हैं।★
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हाथ ब्रज और ध्वजा विराजे, काँधे मूँज जनेऊ साजै॥5॥★
《अर्थ》→ आपके हाथ मे बज्र और ध्वजा है और कन्धे पर मूंज के जनेऊ की शोभा है।★
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शंकर सुवन केसरी नंदन, तेज प्रताप महा जग वंदन॥6॥★
《अर्थ 》→ हे शंकर के अवतार! हे केसरी नंदन! आपके पराक्रम और महान यश की संसार भर मे वन्दना होती है।★
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विद्यावान गुणी अति चातुर, राम काज करिबे को आतुर॥7॥★
《अर्थ 》→ आप प्रकान्ड विद्या निधान है, गुणवान और अत्यन्त कार्य कुशल होकर श्री राम काज करने के लिए आतुर रहते है।★
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प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया॥8॥★
《अर्थ 》→ आप श्री राम चरित सुनने मे आनन्द रस लेते है। श्री राम, सीता और लखन आपके हृदय मे बसे रहते है।★
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सूक्ष्म रुप धरि सियहिं दिखावा, बिकट रुप धरि लंक जरावा॥9॥★
《अर्थ》→ आपने अपना बहुत छोटा रुप धारण करके सीता जी को दिखलाया और भयंकर रूप करके.लंका को जलाया।★
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भीम रुप धरि असुर संहारे, रामचन्द्र के काज संवारे॥10॥★
《अर्थ 》→ आपने विकराल रुप धारण करके.राक्षसों को मारा और श्री रामचन्द्र जी के उदेश्यों को सफल कराया।★
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लाय सजीवन लखन जियाये, श्री रघुवीर हरषि उर लाये॥11॥★
《अर्थ 》→ आपने संजीवनी बुटी लाकर लक्ष्मणजी को जिलाया जिससे श्री रघुवीर ने हर्षित होकर आपको हृदय से लगा लिया।★
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रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई, तुम मम प्रिय भरत सम भाई॥12॥★
《अर्थ 》→ श्री रामचन्द्र ने आपकी बहुत प्रशंसा की और कहा की तुम मेरे भरत जैसे प्यारे भाई हो।★
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सहस बदन तुम्हरो जस गावैं, अस कहि श्री पति कंठ लगावैं॥13॥★
《अर्थ 》→ श्री राम ने आपको यह कहकर हृदय से.लगा लिया की तुम्हारा यश हजार मुख से सराहनीय है।★
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सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा, नारद,सारद सहित अहीसा॥14॥★
《अर्थ》→श्री सनक, श्री सनातन, श्री सनन्दन, श्री सनत्कुमार आदि मुनि ब्रह्मा आदि देवता नारद जी, सरस्वती जी, शेषनाग जी सब आपका गुण गान करते है।★
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जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते, कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते॥15॥★
《अर्थ 》→ यमराज,कुबेर आदि सब दिशाओं के रक्षक, कवि विद्वान, पंडित या कोई भी आपके यश का पूर्णतः वर्णन नहीं कर सकते।★
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तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा, राम मिलाय राजपद दीन्हा॥16॥★
《अर्थ 》→ आपनें सुग्रीव जी को श्रीराम से मिलाकर उपकार किया, जिसके कारण वे राजा बने।★
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तुम्हरो मंत्र विभीषण माना, लंकेस्वर भए सब जग जाना ॥17॥★
《अर्थ 》→ आपके उपदेश का विभिषण जी ने पालन किया जिससे वे लंका के राजा बने, इसको सब संसार जानता है।★
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जुग सहस्त्र जोजन पर भानू, लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥18॥★
《अर्थ 》→ जो सूर्य इतने योजन दूरी पर है की उस पर पहुँचने के लिए हजार युग लगे। दो हजार योजन की दूरी पर स्थित सूर्य को आपने एक मीठा फल समझ कर निगल लिया।★
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प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहि, जलधि लांघि गये अचरज नाहीं॥19॥★
《अर्थ 》→ आपने श्री रामचन्द्र जी की अंगूठी मुँह मे रखकर समुद्र को लांघ लिया, इसमें कोई आश्चर्य नही है।★
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दुर्गम काज जगत के जेते, सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥20॥★
《अर्थ 》→ संसार मे जितने भी कठिन से कठिन काम हो, वो आपकी कृपा से सहज हो जाते है।★

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राम दुआरे तुम रखवारे, होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥21॥★
《अर्थ 》→ श्री रामचन्द्र जी के द्वार के आप.रखवाले है, जिसमे आपकी आज्ञा बिना किसी को प्रवेश नही मिलता अर्थात आपकी प्रसन्नता के बिना राम कृपा दुर्लभ है।★
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सब सुख लहै तुम्हारी सरना, तुम रक्षक काहू.को डरना॥22॥★
《अर्थ 》→ जो भी आपकी शरण मे आते है, उस सभी को आन्नद प्राप्त होता है, और जब आप रक्षक. है, तो फिर किसी का डर नही रहता।★
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आपन तेज सम्हारो आपै, तीनों लोक हाँक ते काँपै॥23॥★
《अर्थ. 》→ आपके सिवाय आपके वेग को कोई नही रोक सकता, आपकी गर्जना से तीनों लोक काँप जाते है।★
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भूत पिशाच निकट नहिं आवै, महावीर जब नाम सुनावै॥24॥★
《अर्थ 》→ जहाँ महावीर हनुमान जी का नाम सुनाया जाता है, वहाँ भूत, पिशाच पास भी नही फटक सकते।★
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नासै रोग हरै सब पीरा, जपत निरंतर हनुमत बीरा॥25॥★
《अर्थ 》→ वीर हनुमान जी! आपका निरंतर जप करने से सब रोग चले जाते है,और सब पीड़ा मिट जाती है।★
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संकट तें हनुमान छुड़ावै, मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥26॥★
《अर्थ 》→ हे हनुमान जी! विचार करने मे, कर्म करने मे और बोलने मे, जिनका ध्यान आपमे रहता है, उनको सब संकटो से आप छुड़ाते है।★
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सब पर राम तपस्वी राजा, तिनके काज सकल तुम साजा॥ 27॥★
《अर्थ 》→ तपस्वी राजा श्री रामचन्द्र जी सबसे श्रेष्ठ है, उनके सब कार्यो को आपने सहज मे कर दिया।★
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और मनोरथ जो कोइ लावै, सोई अमित जीवन फल पावै॥28॥★
《अर्थ 》→ जिस पर आपकी कृपा हो, वह कोई भी अभिलाषा करे तो उसे ऐसा फल मिलता है जिसकी जीवन मे कोई सीमा नही होती।★
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चारों जुग परताप तुम्हारा, है परसिद्ध जगत उजियारा॥29॥★
《अर्थ 》→ चारो युगों सतयुग, त्रेता, द्वापर तथा कलियुग मे आपका यश फैला हुआ है, जगत मे आपकी कीर्ति सर्वत्र प्रकाशमान है।★
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साधु सन्त के तुम रखवारे, असुर निकंदन राम दुलारे॥30॥★
《अर्थ 》→ हे श्री राम के दुलारे ! आप.सज्जनों की रक्षा करते है और दुष्टों का नाश करते है।★
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अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता, अस बर दीन जानकी माता॥३१॥★
《अर्थ 》→ आपको माता श्री जानकी से ऐसा वरदान मिला हुआ है, जिससे आप किसी को भी आठों सिद्धियां और नौ निधियां दे सकते है।★
1.) अणिमा → जिससे साधक किसी को दिखाई नही पड़ता और कठिन से कठिन पदार्थ मे प्रवेश कर.जाता है।★
2.) महिमा → जिसमे योगी अपने को बहुत बड़ा बना देता है।★
3.) गरिमा → जिससे साधक अपने को चाहे जितना भारी बना लेता है।★
4.) लघिमा → जिससे जितना चाहे उतना हल्का बन जाता है।★
5.) प्राप्ति → जिससे इच्छित पदार्थ की प्राप्ति होती है।★
6.) प्राकाम्य → जिससे इच्छा करने पर वह पृथ्वी मे समा सकता है, आकाश मे उड़ सकता है।★
7.) ईशित्व → जिससे सब पर शासन का सामर्थय हो जाता है।★
8.)वशित्व → जिससे दूसरो को वश मे किया जाता है।★
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राम रसायन तुम्हरे पासा, सदा रहो रघुपति के दासा॥32॥★
《अर्थ 》→ आप निरंतर श्री रघुनाथ जी की शरण मे रहते है, जिससे आपके पास बुढ़ापा और असाध्य रोगों के नाश के लिए राम नाम औषधि है।★
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तुम्हरे भजन राम को पावै, जनम जनम के दुख बिसरावै॥33॥★
《अर्थ 》→ आपका भजन करने से श्री राम.जी प्राप्त होते है, और जन्म जन्मांतर के दुःख दूर होते है।★
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अन्त काल रघुबर पुर जाई, जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई॥34॥★
《अर्थ 》→ अंत समय श्री रघुनाथ जी के धाम को जाते है और यदि फिर भी जन्म लेंगे तो भक्ति करेंगे और श्री राम भक्त कहलायेंगे।★
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और देवता चित न धरई, हनुमत सेई सर्व सुख करई॥35॥★
《अर्थ 》→ हे हनुमान जी! आपकी सेवा करने से सब प्रकार के सुख मिलते है, फिर अन्य किसी देवता की आवश्यकता नही रहती।★
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संकट कटै मिटै सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥36॥★
《अर्थ 》→ हे वीर हनुमान जी! जो आपका सुमिरन करता रहता है, उसके सब संकट कट जाते है और सब पीड़ा मिट जाती है।★
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जय जय जय हनुमान गोसाईं, कृपा करहु गुरु देव की नाई॥37॥★
《अर्थ 》→ हे स्वामी हनुमान जी! आपकी जय हो, जय हो, जय हो! आप मुझपर कृपालु श्री गुरु जी के समान कृपा कीजिए।★
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जो सत बार पाठ कर कोई, छुटहि बँदि महा सुख होई॥38॥★
《अर्थ 》→ जो कोई इस हनुमान चालीसा का सौ बार पाठ करेगा वह सब बन्धनों से छुट जायेगा और उसे परमानन्द मिलेगा।★
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जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा, होय सिद्धि साखी गौरीसा॥39॥★
《अर्थ 》→ भगवान शंकर ने यह हनुमान चालीसा लिखवाया, इसलिए वे साक्षी है कि जो इसे पढ़ेगा उसे निश्चय ही सफलता प्राप्त होगी।★
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तुलसीदास सदा हरि चेरा, कीजै नाथ हृदय मँह डेरा॥40॥★
《अर्थ 》→ हे नाथ हनुमान जी! तुलसीदास सदा ही श्री राम का दास है।इसलिए आप उसके हृदय मे निवास कीजिए।★
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पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रुप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥★
《अर्थ 》→ हे संकट मोचन पवन कुमार! आप आनन्द मंगलो के स्वरुप है। हे देवराज! आप श्री राम, सीता जी और लक्ष्मण सहित मेरे हृदय मे निवास कीजिए।★
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सीता राम दुत हनुमान जी को समर्पित


क्यों पड़ते है श्री जगन्नाथ भगवान प्रत्येक वर्ष बीमार...... ????


भक्त माधव दास जी 
उड़ीसा प्रान्त में जगन्नाथ पूरी में एक भक्त रहते थे , श्री माधव दास जी  अकेले रहते थे, कोई संसार से इनका लेना देना नही |

अकेले बैठे बैठे भजन किया करते थे, नित्य प्रति श्री जगन्नाथ प्रभु का दर्शन करते थे और उन्ही को अपना सखा मानते थे, प्रभु के साथ खेलते थे |

प्रभु इनके साथ अनेक लीलाए किया करते थे | प्रभु इनको चोरी करना भी सिखाते थे भक्त माधव दास जी अपनी मस्ती में मग्न रहते थे |

 जब जगन्नाथ प्रभु बन गये सेवक.........
एक बार माधव दास जी को अतिसार( उलटी – दस्त ) का रोग हो गया। वह इतने दुर्बल हो गए कि उठ-बैठ नहीं सकते थे, पर जब तक इनसे बना ये अपना कार्य स्वयं करते थे और सेवा किसी से लेते भी नही थे |

कोई कहे महाराजजी हम कर दे आपकी सेवा तो कहते नही मेरे तो एक जगन्नाथ ही है वही मेरी रक्षा करेंगे । ऐसी दशा में जब उनका रोग बढ़ गया वो उठने बेठने में भी असमर्थ हो गये ,

 तब श्री जगन्नाथजी स्वयं सेवक बनकर इनके घर पहुचे और माधवदासजी को कहा की हम आपकी सेवा कर दे |

भक्तो के लिए अपने क्या क्या नही किया…
क्यूंकि उनका इतना रोग बढ़ गया था की उन्हें पता भी नही चलता था की कब मल मूत्र त्याग देते थे | वस्त्र गंदे हो जाते थे |

उन वस्त्रो को जगन्नाथ भगवान अपने हाथो से साफ करते थे, उनके पुरे शरीर को साफ करते थे, उनको स्वच्छ करते थे,।
कोई अपना भी इतनी सेवा नही कर सके, जितनी जगन्नाथ भगवान ने भक्त माधव दास जी की करी है |
भक्त माधव दास जी पर प्रभु का स्नेह.........

जब माधवदासजी को होश आया,तब उन्होंने तुरंत पहचान लीया की यह तो मेरे प्रभु ही हैं।
एक दिन श्री माधवदासजी ने पूछ लिया प्रभु से –

 “प्रभु आप तो त्रिभुवन के मालिक हो, स्वामी हो, आप मेरी सेवा कर रहे हो | आप चाहते तो मेरा ये रोग भी तो दूर कर सकते थे, रोग दूर कर देते तो ये सब करना नही पड़ता | ”

ठाकुरजी कहते हा देखो माधव! मुझसे भक्तों का कष्ट नहीं सहा जाता,इसी कारण तुम्हारी सेवा मैंने स्वयं की। जो प्रारब्द्ध होता है उसे तो भोगना ही पड़ता है |

अगर उसको काटोगे तो इस जन्म में नही पर उसको भोगने के लिए फिर तुम्हे अगला जन्म लेना पड़ेगा और मै नही चाहता की मेरे भक्त को ज़रा से प्रारब्द्ध के कारण अगला जन्म फिर लेना पड़े,

 इसीलिए मैंने तुम्हारी सेवा की लेकिन अगर फिर भी तुम कह रहे हो तो भक्त की बात भी नही टाल सकता 

भक्तो के सहायक बन उनको प्रारब्द्ध के दुखो से, कष्टों से सहज ही पार कर देते है प्रभु
अब तुम्हारे प्रारब्द्ध में ये 15 दिन का रोग और बचा है, इसलिए 15 दिन का रोग तू मुझे दे दे |
 15 दिन का वो रोग जगन्नाथ प्रभु ने माधवदासजी से ले लिया |

आज भी इसलिए जगन्नाथ भगवान होते है बीमार.......

वो तो हो गयी तब की बात पर भक्त वत्सलता देखो आज भी वर्ष में एक बार जगन्नाथ भगवान को स्नान कराया जाता है ( जिसे स्नान यात्रा कहते है ) | 
स्नान यात्रा करने के बाद हर साल 15 दिन के लिए जगन्नाथ भगवान आज भी बीमार पड़ते है |

15 दिन के लिए मंदिर बंद कर दिया जाता है  कभी भी जगनाथ भगवान की रसोई बंद नही होती पर इन 15 दिन के लिए उनकी रसोई बंद कर दी जाती है |
 भगवान को 56 भोग नही खिलाया जाता , ( बीमार हो तो परहेज़ तो रखना पड़ेगा ) 

प्रभु को लगाया जाता है काढ़ो का भोग.........

15 दिन जगन्नाथ भगवान को काढ़ो का भोग लगता है | इस दौरान भगवान को आयुर्वेदिक काढ़े का भोग लगाया जाता है। जगन्नाथ धाम मंदिर में तो भगवान की बीमारी की जांच करने के लिए हर दिन वैद्य भी आते हैं।

काढ़े के अलावा फलों का रस भी दिया जाता है। वहीं रोज शीतल लेप भी लगया जाता है। बीमार के दौरान उन्हें फलों का रस, छेना का भोग लगाया जाता है और रात में सोने से पहले मीठा दूध अर्पित किया जाता है।
भगवान जगन्नाथ बीमार हो गए है और अब 15दिनों तक आराम करेंगे। आराम के लिए 15 दिन तक मंदिरों पट भी बंद कर दिए जाते है और उनकी सेवा की जाती है। ताकि वे जल्दी ठीक हो जाएं।

जिस दिन वे पूरी तरह से ठीक होते है उस दिन जगन्नाथ यात्रा निकलती है, जिसके दर्शन हेतु असंख्य भक्त उमड़ते है |
खुद पे तकलीफ ले कर अपने भक्तो का जीवन सुखमयी बनाये। ऐसे तो सिर्फ मेरे भगवान ही हो सकते है।

जय जगन्नाथ जी की.......